॥ हरि: शरणम्‌ !॥

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

यदि भगवान्‌ के पास कामना लेकर जायँगे तो भगवान्‌ संसार बन जायँगे और यदि संसार के पास निष्काम होकर जायँगे तो संसार भी भगवान्‌ बन जाएगा । अत: भगवान्‌ के पास उनसे प्रेम करने के लिए जाएँ और संसार के पास सेवा करने के लिए, और बदले में भगवान्‌ और संसार दोनों से कुछ न चाहें तो दोनों से ही प्रेम मिलेगा। - स्वामी श्रीशरणानन्दजी

एक परिचय

मानव सेवा संघ का दर्शन

तत्वज्ञान एवं प्रभु प्रेम के रस से अभिन्न अहं-शून्य संतों एवं भक्तों का हमारे बीच उपस्थित होना, निर्मल प्रेम की अभिव्यक्ति के द्वारा नित्य-जीवन की याद दिलाना, भव्य लोगों की यन्त्रणा से परित्राण के लिए पुरुषार्थ करने का प्रोत्साहन देना सृष्टि के मंगलमय विधान के मंगलकारी विधायक की मंगलमय योजना है | इसी योजना की श्रृंखला में एक नई कड़ी जोड़ने आए थे-ब्रह्मलीन, प्रज्ञाचक्षु परम पूज्य स्वामी शरणानंद जी महाराज |

ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित, प्रभु प्रेम के रस से पूरित, परहित की भावना से द्रवित होकर-दुख-निवृत्ति, चिर-शांति, जीवन-मुक्ति एवं भगवत-भक्ति की चर्चा जो इनके द्वारा हुई हैं, वह मानव-मात्र के लिए क्रांतिकारी अमर संदेश है | इनके वचनों में मौलिकता है, युक्तियां अकाट्य है, प्रस्तुतीकरण अनूठा है और इनके हृदय में साधक-मात्र के कल्याण की कोमल भावना है |

इनके जीवनदायी विचारों को सुनकर आप स्वयं भी अनुभव करेंगे कि कैसा भगीरथ प्रयास इन्होंने किया है-इस बात के लिए कि जीवन की उच्चतम उपलब्धि जो प्रेम-तत्व की अभिव्यक्ति है, उसका आनंद-मानव मात्र को मिल जाए | उनका कथन है कि सत्य क्या किसी व्यक्ति के माध्यम से अभिव्यक्त होता है ? कदापि नहीं | अतः अहं-शून्य व्यक्तित्व के माध्यम से जो सत्य अभिव्यक्त हुआ, उसको उन्होंने अपने नाम से प्रकाशित करना पसंद नहीं किया | इसमें एक और तथ्य यह है कि जिन्हें अहं को अभिमान-शून्य रखना अभीष्ट होता है, वे आत्म-ख्याति से बच कर रहते हैं | जो उनका कथन था, वही उनका जीवन था | इसी कारण उन्होंने उनका जीवनदायी अमर संदेश श्रोता के हृदय को सीधा स्पर्श करते हुए उसे उत्थान के मार्ग पर लगा देता है | आज भी उनकी अमर वाणी परिचित मित्रों, प्रेमियों एवं अनुयायियों के कानों में गूंज रही है और मार्ग-दर्शन कर रही है

संघ के प्रवर्तक परम कारुणिक, मानवता के मसीहा क्रान्तदृष्टा संत ने अपनी एहलौकिक लीला मोक्षदा एकादशी श्री गीता जयंती 25 दिसंबर 1974 को संवरण की | उनके पश्चात दिव्य-ज्योति परम पूज्या देवकी माताजी ने मानवता जागृति के इस अभियान को अग्रसरित किया एवं सन 1992 में उनके देवलोक प्रस्थान के पश्चात इन्ही महान विभूतियों की श्रंखला में उनके द्वारा स्थापित आदर्शों को स्वामी श्री अद्वैत चैतन्य जी महाराज एवं सुश्री साध्वी अर्पिता बहन जी निरंतर जन-जन तक पहुंचाने हेतु प्रयत्नशील हैं | इसी कड़ी में सन 1978 से संघ को समर्पित श्री गोपाल शरण जी महाराज, स्वामी श्री अद्वैत चैतन्य जी महाराज एवं साध्वी सुश्री अर्पिता बहन जी के सानिध्य में उनके निर्देशानुसार महाराज श्री द्वारा मानवतावादी प्रज्वलित मशाल के अभियान को आगे बढ़ाने में सतत प्रयत्नशील हैं |

संत के अनुभव-सिद्ध वचन बड़े ही प्रभावी हैं | कर्म-प्रधान, विचार-प्रधान और भाव-प्रधान सब प्रकार के साधकों को सिद्धि दिलाने वाले हैं | रूढ़िगत जड़ता से साधकों को मुक्त कराने वाले हैं, निराश के अंधकार में जीवन-ज्योति जगाने वाले हैं तथा असमर्थों को सर्व-सामर्थयवान का अटूट सहारा देने वाले हैं |

जाति-भेद, रंग-भेद, संप्रदाय और वर्ग-भेद, वाद और इज्म के भेदों से विविध संकीर्णताओं में विभाजित संसार के विभिन्न देशों को एक दूसरे के नाश में जुटे हुए देखकर पर-पीड़ित परम कारुणिक संत का हृदय अत्यंत व्यथित हो उठा | उनके सामने प्रश्न थे :

  1. व्यक्ति का कल्याण एवं सुंदर समाज का निर्माण कैसे हो?
  2. विश्व-शांति सुरक्षा कैसे रहे ?
  3. सांप्रदायिक भेद-भाव कैसे मिटे ?
  4. सामाजिक विषमताए कैसे दूर हो ?
  5. मानव के भीतर विद्यमान सोई हुई मानवता कैसे जागृत हो ?
  6. मानव-मात्र का जीवन पूर्ण कैसे हो, अर्थात शांति, मुक्ति और भक्ति की मांग पूरी कैसे हो ?
  7. करुणा से द्रवित सर्वात्मभाव से भावित संत-हृदय में गहन एकांतिक चिंतन के फलस्वरूप उपयुक्त प्रश्नों के उत्तर में "मानवता के मूल सिद्धांत" प्रकाशित में आए | उनको श्री महाराज जी ने मानव समाज के लिए एक नवीन क्रांतिकारी विचार-प्रणाली के रूप में संजोया | उसी विचार-प्रणाली का प्रतीक है- "मानव सेवा संघ"