॥ हरि: शरणम्‌ !॥

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

॥ हरि: शरणम्‌ !॥

यदि भगवान्‌ के पास कामना लेकर जायँगे तो भगवान्‌ संसार बन जायँगे और यदि संसार के पास निष्काम होकर जायँगे तो संसार भी भगवान्‌ बन जाएगा। अत: भगवान्‌ के पास उनसे प्रेम करने के लिए जाएँ और संसार के पास सेवा करने के लिए, और बदले में भगवान्‌ और संसार दोनों से कुछ न चाहें तो दोनों से ही प्रेम मिलेगा। - स्वामी श्रीशरणानन्दजी

परियोजना

मानव सेवा संघ का उद्देश्य राष्ट्र, जाति तथा सम्प्रदाय का भेद न रखते हुए भिन्न-भिन्न उपयुक्त प्रयोगों द्वारा मानव समाज के विभिन्न वर्गो जैसे-बालक, महिला, रोगी, वृद्ध, विरक्त एवं समाज-सेवक की यथा शक्ति सेवा करना है, साथ-ही-साथ मानव हितकारी पशुओं तथा वृक्षों का संरक्षण और संवर्धन करना है।

वर्तमान में मानव सेवा संघ द्वारा निम्नलिखित सेवा प्रवृत्तियाँ संचालित हैं:-

साधक-सेवा
इनमें लगभग पचास साधक स्थाई रूप से रह कर अपनी सेवा एवं साधना में रत हैं | इसके अतिरिक्त साधन दृष्टि से बाहर से भी साधक महानुभाव बीच-बीच में आते जाते रहते हैं जिनके रहने भोजन प्रसाद आदि की व्यवस्था आश्रम करता है
चिकित्सा-सेवा
चिकित्सा के अंतर्गत होम्योपैथिक डिस्पेंसरी, आयुर्वेदिक चिकित्सालय, नेत्र चिकित्सा, और दंत चिकित्सा संचालित है | जिसमें वृंदावन नगर के अतिरिक्त दूरदराज के ग्रामीण अंचलों से भी रोगी आकर चिकित्सा लाभ लेते हैं|
अन्नक्षेत्र-सेवा
अन्नक्षेत्र के अंतर्गत नित्य प्रातः काल खिचड़ी एवं (छाछ) मट्ठा का वितरण किया जाता है | इसके अतिरिक्त समय समय पर बाहर से आए आगंतुक महानुभावों के सहयोग से जलेबी कचोरी एवं वस्त्र आदि का वितरण भी जरूरतमंदों में किया जाता है | जिसमें प्रतिदिन लगभग 50 से 100 भिक्षुक प्रसाद ग्रहण करते हैं
गौ-सेवा
पूज्यपाद स्वामी श्री शरणानंद जी महाराज द्वारा स्थापित एक गौशाला भी आश्रम परिसर में संचालित है | जिसमें साहीवाल नस्ल के लगभग 65-70 गौवंश हैं |
वृक्ष-सेवा
पर्यावरण की दृष्टि से आश्रम परिसर में प्रतिवर्ष वर्षा-काल के समय में विभिन्न प्रजातियों के छायादार वृक्षों का रोपण किया जाता है |
जल-सेवा
आश्रम की ओर से एक प्याऊ का निर्माण भी कराया गया है | जिसमें वाटर-कूलर लगाकर शीतल-जल की व्यवस्था की गई है | जिससे ग्रीष्म-ऋतु में राहगीरों को शीतल-जल मिल सके, इसके अतिरिक्त वर्ष में दो बार अक्षय तृतीया एवं निर्जला-एकादशी को आश्रम द्वारा शरबत-सेवा भी संचालित की जाती है |
सत्संग-योजना
आश्रम-परिसर में स्थित "संतकुटी" में प्रतिदिन प्रातः एवं सायंकाल सत्संग एवं स्वाध्याय का नियमित कार्यक्रम चलता है और प्रत्येक एकादशी को प्रातः 8:00 से 9:00 सत्संग की विशेष गोष्टी संचालित होती है |
गीता-जयंती एवं पुण्य स्मृति-दिवस
इसी दिन स्वामी श्री शरणानंद जी महाराज द्वारा "संघ" की स्थापना हुई थी एवं इसी दिन को सन् 1974 में उन्होंने अपने महाप्रयाण के लिए भी चुना था | इसके अतिरिक्त श्री कृष्ण जन्माष्टमी एवं गुरु-पूर्णिमा के पावन-पर्व पर भी "सत्संग" एवं सतचर्चा का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है | जिसमें कि 100 से 150 साधक महानुभावों की उपस्थिति रहती है |
साहित्य-सेवा
मानव सेवा संघ के प्रवर्तक ब्रह्मलीन पूज्यपाद प्रज्ञाचक्षु संत स्वामी श्री शरणानंद जी महाराज की अनुभव-सिद्ध वाणी के साहित्य का प्रकाशन मानव सेवा संघ, वृंदावन द्वारा किया जाता है | जिसके माध्यम से साधक-समाज अपने आध्यात्मिक उत्थान के लिए प्रेरक प्रेरणात्मक साहित्य सेवा एवं स्वाध्याय का लाभ ले रहे हैं | इसके साथ-साथ मानव सेवा संघ द्वारा व्हाट्सएप ग्रुप एवं फेसबुक के माध्यम से नित्य-प्रति महाराज श्री की अमृतवाणी का संदेश साधकों के साधन-निर्माण के लिए प्रेषित किया जाता है |