जिस शरीर से तुम प्यार करते हो उसका एक बाह्य स्वरूप और है जिसका नाम है “मानव सेवा संघ” जो एक मात्र मानव दर्शन तथा जीवन विज्ञान से सिद्ध है। उसकी जितनी चाहो सेवा करो। अनेक शरीर नाश हो जायेंगे पर वह बना रहेगा। अर्थात् मानव सेवा संघ की यथेष्ट सेवा ही शरणानन्द की सेवा है। जिन्होंने ‘मानव सेवा संघ’ के प्रकाश को अपनाया वह सभी “शरणानन्द” से अभिन्न हो गये। शरणानन्द का अर्थ है- मानव सेवा संघ। इसके प्रति जिसकी श्रद्धा है, उसका मैं ॠणी हूँ।
शरणानंद (28-11-68)